Saturday, March 25, 2017

लड़ते-लड़ते लड़ना भूल गए हैं...

कुछ शब्द पढ़ना भूल गए हैं,
लड़ते-लड़ते लड़ना भूल गए हैं।
वाजिब है तख़रीर होना,
आख़िर-तर्क ही तो तख़रीर है।
पर अब तो आलम है ऐसा की,
अर्थ शब्द के गढ़ना भूल गए हैं,
लड़ते-लड़ते लड़ना ही भूल गए हैं।

आइना भी अक्सर पूछे है,
तुम ऐसे मुझे क्यूँ देखते हो?
वो भी है अबसे दुश्मन अपना,
कहता हैं हम- सवाल तुम्हारे हैं-अपने पास ही रखना।
अब तो आलम है ऐसा की,
सवाल समझना भूल गए हैं,
लड़ते-लड़ते लड़ना ही भूल गए हैं।

राष्ट्रवादी हैं हम या हूँ बहु-राष्ट्रवादी,
सुबह शाम बस यही बहस होती है।
आस्था को मिथ्या कहकर,
तड़ीपार होने की माँग होती है।
भारत माता की जय भी है,
मादरे-वतन कहने का भी है शौक़,
पर बहस तो मखौल है,
कुछ ऐसा ही माहौल है,
अब तो आलम है ऐसा की,
बुनियादी हक़ीक़त भूल गए हैं,
लड़ते-लड़ते लड़ना ही भूल गए हैं।

वो मंदिर था या थी मस्जिद,
बस इसी की व्याख्या होती है।
क्यूँ ना चलके ईश्वर भूमि परकुछ और नया रच देते हैं?
आओ चलो लेकर सीमेंट-ईट,
पाठशाला का निर्माण कर देते हैं।
पर अब तो आलम है ऐसा की,
मिलके चलना भूल गए हैं।
लड़ते-लड़ते लड़ना ही भूल गए हैं।
माँ-पिता में भगवान को पाना,
दादी-नानी ने सिखलाया था।
पर तैश है ऐसा-ऐसे तेवर,
बस जंग की बातें होती हैं-
पर अब तो आलम है ऐसा की,
वो सीखें सारी भूल गए हैं-
लड़ते-लड़ते लड़ना ही भूल गए हैं।

जब कुछ खो रहा होता है।



लग जाती है भनक-
जब कुछ खो रहा होता है।
कहीं अंदर बहुत सीने में दफ़्न पड़ा,
कुछ महसूस हो रहा होता है।

दफ़्न किए उम्मीद उसे ख़ून फेंकती रहती है,
दिल कहता है, ना करो, मानूँगा नहीं-
पर फिर भी कहती रहती है-
नहीं, नहीं जा रहा कही भी वो जिसको तुम बसाए बैठे हो,
लगे रहे-डटे रहो-हारना नहीं है,
यूँ! क्यों घबराए बैठे हो?

कहता है दिल कि सच हूँ मैं,
इसलिए सहमाया बैठा हूँ,
ना कर ज़्यादा मन की बातें,
हट जा ऊपर से कहता हूँ।
जान रहा हूँ मसला सारा,
मन तो मुग़ालते का शौक़ीन हैं,
पर मैं तो सच में रहता हूँ।

छूट रहा है मुझसे कुछ-
खो रहा हूँ क़तरा-क़तरा,
बसा था मेरे भीतर जो,
आ गया है उसपे अब ख़तरा।

महसूस कर लेने दे या फिर,
मनहूस ही यूँ रुक जाऊँगा।
बनाया ही ऐसा बुड़बक मुझको,
ख़ुद को मैं रोक ना पाऊँगा।
धड़कता रहा हूँ बरसो से,
अब है थकान सो जाने दे-
जो जा रहा है उसको तू,
बिना किसी रुकावट जाने दे।

मेरा क्या है- अब तो हूँ टूटा,
टूटा ही सही पर जाने दे-
रुकने दे मुझको या हट तो जा,
होगी मुश्किल या नामुमकिन कोशिश,
पर पास किसी और के तो जाने दे!
ना जा पाया पास किसी और के गर ,
तो चलूँगा या थक कर मैं थम जाऊँगा,
उम्मीद है तू,अब मान भी जा-
अब तू भी मुझपे ज़ुल्म ना कर,
वादा है तेरी एकतरफ़ा मोहब्बत का, 
ज़िंदा रहा तो तेरे पास ही आऊँगा।