कुछ बातें करनी थी तुमसे,
जो मैं ज़रूर करता अगर,
मौक़ापरस्त ना होती तुम।
पर फिर भी मैं पूछूँगा तुमसे,
पूछूँगा! क्योंकि वो सारी बातें जो कभी तुमने करी थी मुझसे,
वो आज सवाल हैं मेरे,
उनका जवाब हो तुम!
मौक़ा मिले तो बताना मुझे,
और बता पाना तो बताना मुझे,
कि जिन आँसुओं को कभी यूहीं चूम लिया करता था मैं,
वो भी यूहीं पोंछ देता है क्या?
या फिर सूख कर आखों की सफ़ेदी में रम गए तुम्हारी, वो आँसू?
मौक़ा मिले तो बताना मुझे,
और बता पाना तो बताना मुझे,
कि जिस मुस्कुराहट के लिए यूहीं दौड़ आया करता था मैं,
वो भी आया करता है क्या?
या फिर तुम्हारी ख़ामोशी की गूँज में छिटक कर यूहीं बिखर गयी तुम्हारी, वो मुस्कुराहट?
मौक़ा मिले तो बताना मुझे,
और बता पाना तो बताना मुझे,
कि तुम्हारे नाराज़ होने पर जैसे तुम्हें मनाया करता था मैं,
वो भी मनाता है क्या?
या फिर तुम्हारे मिज़ाज की गरमी में पसीना बन कर बह गयी तुम्हारी, वो नराज़गी?
मौक़ा मिले तो बताना मुझे।
और बता पाना तो बताना मुझे,
कि तुम्हारे दर्द में छटपटाने पर जैसे कराहा करता था मैं,
वो भी वैसे ही कराहता है क्या?
या फिर तुम्हारी ज़िंदगी के आक्रोश में एक पुकार की तरह दब गयी तुम्हारी, वो छटपटाहट?
मौक़ा मिले तो बताना मुझे।
और बता पाना तो बताना मुझे,
कि तुम्हारे भूखे होने पर जैसे तुम्हें निवाले खिलाया करता था मैं,
वो भी वैसे ही खिलाता है क्या?
या फिर तुम्हारी ज़िंदगी के स्वाद में एक खुराक बन कर रह गयी है तुम्हारी, वो भूख?
ये कुछ बातें करनी थी तुमसे,
जो मैं ज़रूर करता अगर,
मौक़ापरस्त ना होती तुम।
पर फिर भी मैं पूछूँगा तुमसे,
पूछूँगा! क्योंकि वो सारी बातें जो कभी तुमने मुझसे करी थी,
वो आज सवाल हैं मेरे,
उनका जवाब हो तुम!
-संकल्प
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