अमावस की रात में,
जब छाया अँधेरा घना हो,
तो देखना आसमान को।
हो सके तो ढूंढ कर तारे-
पूर्णिमा की रातें भर लेना।
उस पतली चारपायी पर लेटकर, खुदसे-
मेरे हिस्से की बातें कर लेना।
यहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम हो,
हमारे दरमियाँ इस सड़क में,
जो हो गए गहरे गड्ढे हैं,
हो सके तो उनमें ज़रा मिट्टी तुम जाके भर देना।
आधे रास्ते चलना तुम,
आधा मैं आजाऊँगा,
दिख जाऊँगा मैं,
ना दिखूँ तो आवाज़ दे लेना।
दिख गए तुम मुझको गर पहले,
मेरी चीख़ तुम सुन लेना।
तुम रोना मत, मैं रो लूँगा,
तुम हास देना मेरी बातों पर,
रिश्ता ही तो था, गाँठ ही तो है,
खोलूँ जब दख़ल ना देना।
खुलने देना गाठें सारी, और-
धागा जब हो सीधा-सुलझा,
तो तोड़ना मत- बस इतना कर लेना।
-संकल्प
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