एक दोस्त ने मुझे सलाह दी थी. जो कहना है ब्लॉग पे लिख कर शेयर किया करो. जिसे पढ़ना होगा पढ़ेगा. पर आज मैं ब्लॉग पे न लिखकर यही लिखूंगा। इसलिए क्योंकि जर्नलिज्म की पढाई करने के बाद भी मेरी इतनी पहुँच नहीं है की मैं कही अपनी बात को छपवा पाऊं और इसलिए भी क्योंकि मैं समझ गया हूँ की ब्लॉग का लिंक खोलने की ज़हमत ज़्यादा लोग उठाना नहीं चाहते. संपन्न होने का एहसास मुझे फेसबुक भी करता है और इसीलिए इसी सम्पन्नता का फायदा उठाते हुए मैं यहाँ पे कहूंगा. जिसे पढ़ना हो वो पढ़ले वरना न पढ़े जाने की मेरे शब्दों को आदत है. लेखक हूँ. इतना स्पोर्टिंग हूँ.
आजकल २४ घंटे न्यूज़ चैनल से लेकर फेसबुक तक बहुत क्रांति छायी है. कोई देशहित की बात करने का दूत है और कोई देशद्रोही है. अच्छी बात है. आज़ादी के 69 साल बाद छटाई का एक दौर चला है. नेशनलिस्ट और एंटी नेशनलिस्ट की छटाई का. बढ़िया है. जो नेशनलिस्ट हैं वो भारत में रहेंगे। जो नहीं हैं उन्हें सलाह दी जायेगी की पाकिस्तान चले जाएँ या भाड़ में जाएँ. ये भी बढ़िया है. सस्ती छटाई का दौर.
सनसनीखेज़ और विस्फोटक न्यूज़ का दौर है. हर वक़्त बस शहादत की बातें कूट कूट के कही जा रही हैं. कसर बस इतनी है की ठेले पे पार्थिव शरीर रखके उसका मार्च नहीं निकाला जा रहा. बाकी रोज़ पंचायत बैठती है और पेशी लगती है. न्यूज़रूम में खड़ा एंकर बड़े आराम से नेशनलिस्ट कौन है और कौन नहीं ये बता देता है. जनता भी पुरे विश्वास के साथ इस फैसले और तर्क को मान लेती है.
मैं 90 के दशक में पैदा हुआ हूँ. मेरी देशभक्ति पे अगर कोई सवाल उठता है तो मुस्कुराने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा हथियार नहीं है. पर मैंने टीवी का दौर देखा है, सोशल मीडिया का दौर देख रहा हूँ और इस में जी रहा हूँ. एक सवाल आता है मन में कि अगर इतने ज़्यादा लोग ही देशद्रोही थे तो 69 साल तक देश टूटने से कैसे बचा रहा? आखिर ऐसे सारे लोग अगर भारतीय नहीं हैं तो सब पाकिस्तान के एम्बेसडर रहे होंगे। तो क्या ये सभी आज से पहले जो 4 युद्ध लड़े गए उसमे चीन के साथ हार पे ताली बजा रहे थे? या जब जब कोई सैनिक शहीद होता है तो क्या ये सभी लुत्फ़ उठाते हैं? सच तो ये है की ये सब बातें सतही यानी की सुपरफीशिअल होती जा रही हैं. ज़रूरत से ज़्यादा प्रचार और टीवी न्यूज़ चैनल्स जो हमे पागल कर देंगे. टीवी इंडस्ट्री में हूँ तो पता लगता रहता है की सास बहु शो और अन्य टीवी शो की टीआरपी कम हो गयी है. वो इसलिए क्योंकि आजकल न्यूज़ चैनल पे ड्रामा, रोमांस, थ्रिलर,सस्पेंस, हॉरर, साई-फाई सब मौजूद है. ज़रूरत है कि खुद को ज़रा अपनी संपन्न दुनिया से बाहर निकालके पूछे हम खुदसे की क्या सच मच ये मुद्दे ऐसे हैं जैसा की इन्हें हम देखते हैं? क्या मैं और आप इस लड़ाई में जूझ कर फालतू नफरत में लिप्त नहीं हो रहे की मैं देशभक्त और तू देशद्रोही!
बाहर निकालके ज़रा एक बार गरीबी को देखते हैं. और एक garib से जाकर पूछते हैं उसे क्या चाहिए. वो दो रोटी की बजाय अगर कुछ और मांगले तो मैं समझ जाऊंगा की हम जिस दिशा में बातें और व्यव्हार के स्तर पे जा रहे हैं वो एकदम सही है.
आज जहाँ एक पत्रकार अपने सिवा बाक़ी सबको डिज़ाइनर पत्रकार साबित करने में लगा हुआ है उसी दौर में एक 'सो कॉल्ड डिज़ाइनर' पत्रकार जो वाकई में जीरो रेटिंग पत्रकार है है उसे गरीबी ने खरीद लिया साहब. जब सरे चैनल भारत और पाकिस्तान
में युद्ध की खबर दिखाए डाल रहे हैं, वो गरीबी के बारे में चर्चा कर रहा है .सही है, शायद उसे गरीबी ने अरबो डॉलर में खरीद लिया होगा। रविश कुमार नाम है उनका. आपकी नज़र में अब भी वो बिका हुआ डिज़ाइनर पत्रकार ही रहेगा शायद. आपके अपने तर्क होंगे.
में युद्ध की खबर दिखाए डाल रहे हैं, वो गरीबी के बारे में चर्चा कर रहा है .सही है, शायद उसे गरीबी ने अरबो डॉलर में खरीद लिया होगा। रविश कुमार नाम है उनका. आपकी नज़र में अब भी वो बिका हुआ डिज़ाइनर पत्रकार ही रहेगा शायद. आपके अपने तर्क होंगे.
ऐसा नहीं है की पाकिस्तान से निपटारा ज़रूरी नहीं है. बेहद है. पर आपस में टूटकर नहीं. मान लेते हैं न...थोड़े बेईमान तुम, थोड़े बेईमान हम, थोड़े ईमानदार तुम, थोड़े ईमानदार हम. और रही बात सैनिकों की शहादत की तो उसका तमाशा नहीं बनने देना है. उसकी इज़्ज़त हमसे कहीं ज़्यादा है. और यकीन मानिये, कोई भी भारतीय उनकी मौत का जश्न नहीं मन सकता. रही बात किसने क्या बोला...तो सोचना होगा उस बात को जो बड़े बुज़ुर्ग कह गए, ज़रूरत से ज़्यादा एक ही बात को कुरेदने से बात ख़राब ही होती है. और उससे भी ज़्यादा बड़ी बात, टीवी कम देखना चाहिए.
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