Sunday, October 2, 2016

गाँधी शास्त्री- तुम ज़िंदा रहोगे

हे गाँधी- आज जन्मदिन है तुम्हारा, जब किसी और दिन से ज़्यादा गालियां मिलेंगी, पर गाँधी हो तुम, तुम ज़िंदा रहोगे, किसी के मन में , किसी के विश्वास में किसी की जुबां पर, या महज़ नोट पर,जानता हूँ- पहुँचती होगी चोट तुम्हे, पर- तुम ज़िंदा रहोगे। हे शास्त्री, आज जन्मदिन है तुम्हारा, जब तुम्हे ज़्यादा श्रधांजलि मिलेगी। कहते होंगे गाँधी से,मिलते होंगे जब- अच्छा हुआ जो पैदा हुए थे एक दिन, तुमसे नफरत करते- करते मुझसे कब इतना प्यार कर बैठे ये? पर फिर गाँधी सिर्फ मुस्कुराते होंगे, और शास्त्री समझ जाते होंगे. वाह रे गाँधी! तुम्हारी बात अलग है! तुमसे नफरत करने से भी इंसान में प्यार पनपता है. हे गाँधी और शास्त्री, मैं संकल्प हूँ. शास्त्री और गाँधी बनने के गुड़ नहीं हैं मुझमे. इतना जानता हूँ पर, कद तुम्हारे जैसा पाया है. भारत के नक़्शे पर अपना भी वजूद पाया है. तुम दोनों का कुछ तो है मुझमे और रहेगा हमेशा। गाँधी ज़रूर कुछ नाराज़ है मुझसे. मेरे पास ज़्यादा नहीं रहते. पर मैं भी ठहरा जवान, अपने काम की किसानी करना खूब जानता हूँ. जय जवान, जय किसान का जयकार करता रोज़ लड़ने निकल जाता हूँ. तुम चिंता न करना, मैं ज़िंदा रखूँगा तुम्हे. गाली नहीं दूंगा, महज़ श्रधांजलि नहीं दूंगा. कर्म करूँगा. जानता हूँ ताकत तुम्हारी, कुछ तो बात होगी गाँधी तुम में, कि चाहे जितनी नफरत कर ले कोई तुमसे, बिना तुम्हारे घुटने पर आ ही जाता है. कुछ तो बात होगी तुम में शास्त्री, जो तुम्हारी मेहनत के गुन गा ही जाता है. तुम चिंता न करना, तुम ज़िंदा हो. तुम गहरे थे बहुत- तुम सा गहरा तो नहीं हूँ पर- तुम्हे गाली और अपार श्रधांजलि देने वाला मैं वो छिछला भी नहीं हूँ, न गद्दार हूँ, न अति- अहंकारी भारतीय हूँ, तुम में फर्क करके श्रधांजलि देने वालों में से मैं नहीं हूँ. तुम मुझमे हो, मैं कही तुम में अपनी जगह बनाऊंगा. ये वादा रहा तुम दोनों से मेरा, बापू और शांति का दूत न सही, अपने नाम का फ़र्ज़ मैं भी निभा ही जाऊंगा, थोड़ा सा ही सही- अपने देश का वर्चस्व बढ़ा ही जाऊंगा। -संकल्प

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