Saturday, March 25, 2017

जब कुछ खो रहा होता है।



लग जाती है भनक-
जब कुछ खो रहा होता है।
कहीं अंदर बहुत सीने में दफ़्न पड़ा,
कुछ महसूस हो रहा होता है।

दफ़्न किए उम्मीद उसे ख़ून फेंकती रहती है,
दिल कहता है, ना करो, मानूँगा नहीं-
पर फिर भी कहती रहती है-
नहीं, नहीं जा रहा कही भी वो जिसको तुम बसाए बैठे हो,
लगे रहे-डटे रहो-हारना नहीं है,
यूँ! क्यों घबराए बैठे हो?

कहता है दिल कि सच हूँ मैं,
इसलिए सहमाया बैठा हूँ,
ना कर ज़्यादा मन की बातें,
हट जा ऊपर से कहता हूँ।
जान रहा हूँ मसला सारा,
मन तो मुग़ालते का शौक़ीन हैं,
पर मैं तो सच में रहता हूँ।

छूट रहा है मुझसे कुछ-
खो रहा हूँ क़तरा-क़तरा,
बसा था मेरे भीतर जो,
आ गया है उसपे अब ख़तरा।

महसूस कर लेने दे या फिर,
मनहूस ही यूँ रुक जाऊँगा।
बनाया ही ऐसा बुड़बक मुझको,
ख़ुद को मैं रोक ना पाऊँगा।
धड़कता रहा हूँ बरसो से,
अब है थकान सो जाने दे-
जो जा रहा है उसको तू,
बिना किसी रुकावट जाने दे।

मेरा क्या है- अब तो हूँ टूटा,
टूटा ही सही पर जाने दे-
रुकने दे मुझको या हट तो जा,
होगी मुश्किल या नामुमकिन कोशिश,
पर पास किसी और के तो जाने दे!
ना जा पाया पास किसी और के गर ,
तो चलूँगा या थक कर मैं थम जाऊँगा,
उम्मीद है तू,अब मान भी जा-
अब तू भी मुझपे ज़ुल्म ना कर,
वादा है तेरी एकतरफ़ा मोहब्बत का, 
ज़िंदा रहा तो तेरे पास ही आऊँगा।



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