एक गलत था...एक था सही...
शुरुआत में थी कहानी वही...
गलत गलत था...सही सही था...
पर फिर बदला स्वरुप ...किरदार बदले...
शुरुआत में थी कहानी वही...
गलत गलत था...सही सही था...
पर फिर बदला स्वरुप ...किरदार बदले...
वो बदले कि ही तो आग थी- क्रूर, निर्मम और अंधी...
गलत का ईमान जागा था...सही ने भी ठानी थी...
सहनशीलता को अब उसने भी त्यागा था...
फिर शुरू हुई ललकार...बजा नफरत का शंखनाद...
हुआ चिर युद्ध, हुई आबरू तार- तार,
गलत चुप रहा, सही करता रहा कठोर वार,
कभी शब्दबाड़, कभी बद दुआ,
करता रहा हमला बार बार...
गलत का ईमान जागा था...सही ने भी ठानी थी...
सहनशीलता को अब उसने भी त्यागा था...
फिर शुरू हुई ललकार...बजा नफरत का शंखनाद...
हुआ चिर युद्ध, हुई आबरू तार- तार,
गलत चुप रहा, सही करता रहा कठोर वार,
कभी शब्दबाड़, कभी बद दुआ,
करता रहा हमला बार बार...
पर जब लगा युद्ध में विराम...
बदल गए थे कई आयाम...
अब परिभाषा थी नयी, किरदार नए थे...
घाव थे वही, वार नए थे...
बदल गए थे कई आयाम...
अब परिभाषा थी नयी, किरदार नए थे...
घाव थे वही, वार नए थे...
गलत जो कभी था...सही अब वही था...
सही जो हठी था...वो जो सही कभी था...
राख हो गया था बदले कि आग में,
और कहानी फिर वही हुई ख़त्म जहाँ हुई कभी शुरू थी,
फिर एक बार...एक था गलत-
एक सही था...
सही जो हठी था...वो जो सही कभी था...
राख हो गया था बदले कि आग में,
और कहानी फिर वही हुई ख़त्म जहाँ हुई कभी शुरू थी,
फिर एक बार...एक था गलत-
एक सही था...
-संकल्प
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