क्यूँ मरता है तू बन्दे?
झाँक तो खुद में एक दफा,
तू खुद से है- तू कोई और नहीं,
पहचान खुद को- मत हो खुद से खफा.
ये जान तेरी है, कोई खैरात नहीं,
तेरे खुदा की अमानत है-
जो यूँ लुटाता फिरता है,
क्या तू इसे इतनी सस्ती समझता है?
क्यूँ पता है कमज़ोर खुदको इतना तू बन्दे?
गर हार गया तो तुझे क्या दिखा?
सिर्फ अपना खून और फ़ासी के फंदे?
कायर नहीं इंसान है तू!
गर खुद से हारा तो ये क्यों भुला-
की किसी जी जान है तू!
सोच उसे जिसने तुझे जन्म दिया,
जा देख उसे जिसने तुझे कुछ कर दिखने का सपना दिया,
जा...जा पूछ उन्हें-
क्या सह पाएँगे तेरी मौत का बोझ?एक हार तो बस हार है,
कभी उसके आगे कड़ी जीत को तो देख!
न समझ मजबूत है तू ,
गर खुद को तुने त्याग दिया!
हरा तो जीकर तू दिखा,
ले मज़ा उस हर हार का तू-
जिसने तुझे जितने का जज्बा दिया.
दिखा दुनिया को-
कायर नहीं इंसान है तू-
हार और जीत दोनों का अभिमान है तू.
मरना तो आसां है क्युकी दर्द नहीं होता साँसों के रुकने पर.
कोशिश कर-
सहके तो दिखा-
खुशियाँ एंगी तेरे कदमो पर.
जब दर्द हो तब तू साँस तो ले,
हर मौत से तू जीतकर तो दिखा-
हर ग़म में तू जीकर तो दिखा!
आखिर-
कोई कायर नहीं इंसान है तू,
किसी की जागीर नहीं अपना ईमान है तू,
कोई कायर नहीं इंसान है तू...कोई कायर नहीं इंसान है तू....